Abhinav Abhivyanjana अभिनव अभिव्यंजना

 



महाकवि माघ ने 'शिशुपाल वध' में ही कहा है-"क्षणे-क्षणे यन्नवतामुपैति तदैव रूपं रमणीयताया:" अर्थात् जोक्षण-क्षण में नवीनता को प्राप्त हो, वही सुन्दरता है। इस अर्थ में साहित्य सदैव नूतनता को प्राप्त हो रमणीक बना रहता है। शायद यही वजह है कि वर्षों बाद भी कोई रचना कालजयी बनी रहती है। सुधी अध्येता उसे उसी चाव से पढ़ता है और भावविभोर हो जाता है। चूँकि साहित्य समाज का आईना है, अतएव समाज के प्रत्येक पहलू पर दृष्टिपात करना उसका कर्म बन जाता है। चाहे मानव-मन की अनुभूतियाँ हों, चाहे सामाजिक विद्रूपताएँ हों, चाहे राजनैतिक, आर्थिक व नैतिक विषमताएँ हों, सभी का विशद् विवेचन साहित्य का कर्म है और साहित्यकार का धर्म भी।

साहित्य के दो रूप हैं-गद्य और पद्य। दोनों का एक मिश्रित रूप भी बनता है जिसे चम्पू काव्य कहा जाता है। साहित्य में पद्य अर्थात् काव्य रूप अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है। उसका कारण है-तीव्र प्रभावोत्पादकता और सम्प्रेषणीयता। काव्य में भावात्मकता, वैचारिकता कल्पनात्मकता के साथ-साथ अनुभूति की अभिव्यंजना जिसके अन्तर्गत भाषा, शब्द-चयन, अलंकारों का प्रयोग आदि समाविष्ट है, काव्य की सम्प्रेषणीयता में श्रीवृद्धि करते हैं।

'अभिनव अभिव्यंजना' मन के भावों का नवीन रूपों में शब्द-चित्रण है जिसमें ५० कवियों की रचनाएँ संग्रहित हैं। ये रचनाएँ न केवल वस्तु की दृष्टि से वरन् शिल्प की दृष्टि से भी उत्कृष्ट हैं व विषय के प्रति नवीन आग्रह भी है जो पाठकों के हृदय को सहज संस्पर्श करती हुई पैठ बना लेने में समर्थवान हैं। प्रस्तुत काव्य-संग्रह समकालीन काव्य-जगत में विषय-वैविध्य के साथ शैलीगतविविधता का भी आदर्श प्रतिरूप प्रदर्शित करेगा।

इसमें जहाँ गज़लें यथार्थ को प्रतिबिम्बित कर रही हैं, वहीं शृंगार-रसपरक गीत हैं जो हृदय की अनुभूति को कल्पनात्मकता प्रदान करते हैं। एक ओर जहाँ जापानी छंद हाइकु का ललित निरूपण है वहीं दोहे, कहमुकरियाँ व नवगीत देश-प्रेम, मानवीय मूल्य, स्त्री, प्रकृति जैसे विषयों पर उत्कृष्ट सृजनएक नवीन रूपाकार ग्रहण करता है।


Editor :- Ravi Shankar "Vidhyarthi"

Book Details:-
Book Type :- Paperback
Number of Pages :- 112 Excluding Cover Pages
Genre :- Poems